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पत्रकार “टुकड़ों” पर घूमते नजर आये

Nanhi Kalam
Nanhi Kalam
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सबसे ज्यादा बिश्वास पत्र का तमगा लिए हुए लोकतंत्र का “चौथा स्तम्भ” बदहाल स्थिति में पंहुचने के कगार पर है, समाज को आइना दिखाने वाले पत्रकार को अब खुद आइना देखने की जरूरत महसूस हो रही है! एक तरफ अन्ना का जनांदोलन चल रहा है तो दूसरी तरफ मीडिया का लोंगो को हाई-लाइट और बदहाल करने की कोशिस ! ब्यवसाय  में परिवर्तित मीडिया का चेहरा अब कुरूप हो रहा है, सत्यता लगभग अंत की ओर है ! मीडिया की चमक – धमक से प्रभावित होकर इशमे कैरियर बनाने को उत्सुक युवा गुमराह किये जा रहे हैं, जब कोई लड़का किसी संस्था में नौकरी लेने जाता है तो उसे मीडिया की पावर बताकर  इसकी चमक-धमक से प्रभावित करके अधिकारियों से सम्बन्ध बनाने का स्वप्न दिखाकर फ्री में काम कराने की चेष्टा की जाती है , उसे पैसा कमाने के अबैध तरीकों को झरोंखों से दिखाया जाता है और इन्ही तमाम गलत औधाराड़ाओ के बीच “नन्हा पत्रकार” अपने मिशन से भटककर ब्यवसायिक  पत्रकारिता की राह पकड़ लेता है !  और अब ऐसी स्थिति आ जाती की उसकी काबिलियत डगमगा जाती है और वो इधर से उधर पैसा कमाऊ उलझन में डूबता तैरता है !
अभी-अभी चुनाव खत्म हुआ है इसमें तमाम पत्र – पत्रिकाएँ पक्षपाती रूख अख्तियार किये हुए थी वहीँ पर टी.वी. चैनल्स के पत्रकार “टुकड़ों” पर घूमते नजरआये ! कोई भी Byte  या विसुअल टी.वी. पर चलाने से पहले समाज के सफेद्पोस ठेकेदारों को इस लालच में दिखाया जाता था की कुछ पैसे मिल जाये, जहां से पैसे मिलते थे उनकी न्यूज़ चलती थी , छपती थी वहीं दूसरी तरफ चुनाव में खड़े ऐसे प्रत्यासी जो इमानदार, बेदाग और शिक्षित हैं उनका जिक्र करना  अपराध मानते थे ये सब ! ज्यादातर बेईमान आदमी पत्रकारिता में पाँव पसार रहा है जो इस बात का सुबूत है की यह “मिशन” रुपी समाजसेवा अब पिछलग्गू  बनकर चलने को मजबूर है और दोयम दर्जे के व्यक्ति जो पत्रकारिता की आड़ लिए हुवे हैं वो “नन्हे पत्रकारों” को मानसिक और शारीरिक स्तर पर बखूबी परेशान कर रहे हैं!
नेता, गुंडा, बदमाश के हांथो मीडिया की “पावर” लगभग जा चुकी है या फिर बड़े पोस्ट पर भी यही ब्लैकमेलर काबिज़ हुए जा रहे हैं! मीडिया हमेशा पुलिस बिभाग पर अंगुली उठती है मगर अब तो ऐसा लगने लगा है की पुलिस की पहचान तो बनी हुयी है मगर मीडिया की पहचान धूमिल; हो रही है!
कुछ व्यक्ति समर्पित दिखते हैं मगर उनके साथ समस्या है, उनकी उम्र इस अवस्था में आ गयी है की सीखना अब बेइज्जती लगता है और आगे इसलिए नही जा पाते क्योंकि तकनीकी जानकारी के साथ सामायिक जानकारी का अभाव है, इस तरह अब सिखने में बेइज्जती होगी और आगे इसलिए नही जा पाते क्योंकि समय के साथ इन्होने कुछ सीखा ही नहीं अब बस एक ही रास्ता है की आड़े तिरछे चलते रहो क्योंकि छोड़ दिए तो भी बेइज्जती , और ऐसे ही लोग उगाही के चक्कर में पड़ते हैं !
“मिशन” से भटकने की एक वजह मीडिया की टॉप-पोस्ट पर बैठा भ्रष्ट ब्यक्ति भी है क्योंकि जब कोई खबर मेहनत कर के लायी जाती है तो संपादक का सम्मान लिए हुए ये अशिक्षित और भ्रष्ट एक्सपेरिएंस  वाले पत्रकार इन खबरों पर बिजिनेस करते हैं और खबर न तो पेपर में छप पाती है और न ही टी.वी. पर दिख पाता है और तो और इस खबर का क्रेडिट भी रिपोर्टर को नही जाता, इस वजह से व्यक्ति के काम करने की इक्षा समाप्त हो जाती है और वो नीरस तरीके से न्यूज़ बटोरता है!

बड़ी पोस्ट पर बैठे हमारे सम्मानित – अशिक्षित – अनुभवी पत्रकार-गण जो स्वयं को माइक और कैमरे के सामने ब्यक्त नहीं कर सकते वो काबिल युवायों को इस वजह से आगे नही जाने देते क्योंकि उन्हें खुद पीछे छूटने का भय सताता है, खुद को अधूरा होने के बावजूद बड़े बने रहने के संघर्ष में नयी प्रतिभाएं कुचली जा रही हैं, क्योंकि कालेज से पढाई कर के निकलने वाला युवक पैसों की वजह से मात खा जाता है, और मीडिया में पहले से काबिज़ असभ्य पत्रकार भाई इन्हें आश्वासन देते हैं की “त्रिनाथ जी मीडिया में पैसे मिलते नहीं कमाए जाते हैं “

जो ब्यक्ति यह समझते हैं की मीडिया में “अनुभव” मायने रखता है उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए की पत्रकारिता का आधार पढाई और बर्तमान परिस्थियों से खुद को अपडेट रखने से ज्याद मजबूत होता है! अपनी काबिलियत का ढिंढोरा पीटने वाले “कटु-पत्रकार” जब सभी जगह फेल होते नजर आते हैं तो खुद का अखबार, मैगज़ीन या टी.वी.चैनल खोल लेते हैं, मगर समय की डोर सबकी पोल खोल देती है और सबको बेनकाब कर ही देती है! कुछ ऐसे ही संपादक रुपी मायाबी परिंदे तो ऐसे हैं जो ठगने की नयी नयी तरकीबें सोच लेते हैं! बिज्ञापन प्रकाशित करते हैं की आवश्यकता है जुनूनी और सामाजिकता में रूचि रखने वाले तथा अनुभवी पत्रकारों की बेतन योग्यतानुसार !  मगर आश्चर्य तो तब होता है जब सालों तक हजारों लोंगो के आने बाद भी उन्हें कोई योग्य उम्मीदवार नहीं मिलता , अब वो नौकरी देने के एवज में सबसे मोटी रकम वसूलते हैं और इस तरह उन्हें अपने अखबार / मैगज़ीन के लिए एक और “जबरदस्ती वाला ” ग्राहक मिल जाता है ! उनके मैगज़ीन पर किसी मामले में सवाल उठाने पर उन्हें अपनी संपादन की झूठी कुशलता की तवहीनी दिखाई पड़ती है और वो सवाल उठाने वाले को किसी भी स्तर पर ठेंस पहुचाने की ठान लेते हैं! और जहां पर जिद आ जाती है वहाँ पर quality  को बनाए रखना असंभव कार्य हो जाता है!
मेरा अनुभव बहुत छोटा है मगर जो कुछ भी है मैंने इस लेख में वही लिखा है! इसके बारे में हमें अपनी राय अवश्य बताएं , यदि इस लेख को पढ़ रहे किसी पत्रकार भाई को गुस्सा आ रहा है तो इसका मतलब की यह लेख बिलकुल सही आदमी के पास पहुंचा है !

– त्रिनाथ मिश्र
tnraj007@gmail.com


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